राजस्थान में ग्राम स्वराज द्वारा आदिवासी समावेश

महात्मा के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने के लिए एक सकारात्मक प्रयास। 3 राज्यों के हजारों आदिवासी यात्रा में आए साथ।

बांसवाड़ा, 5 जनवरी। ग्राम स्वराज्य परिकल्पना एक ऐसी व्यवस्था है जो राजनैतिक अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अराजकता अथवा तानाशाही जैसी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करती है।

महात्मा गांधी ने गांवों को साशन और प्रशासन की योजनाओं से जोड़ते हुए उनके समग्र विकास का जो सपना देखा था उसे 2022 में भी पूरा करने की कोशिश जोर शोर से हर स्तर पर जारी है।  

अपने- अपने स्तर से विभिन्न राज्यों में आदिवासी समुदाय, ग्रामीण इसको लेकर अपनी सहभागिता और चेतना जगाय रखने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों, यात्राओं का आयोज भी करते रहे है।

ऐसा ही एक प्रयास इन दिनों राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में आदिवासी समुदाय की ओर से किया जा रहा है। जिसका लक्ष्य है विरासत सहेजना, चाहे मिट्टी-जल-वन हो या फिर परम्परागत बीज। इनके संरक्षण के साथ ही परम्परागत साधनों से स्वस्थ और पोषित समाज को लेकर कार्य किया जा रहा है।
 

गांधी के सपने को साकार करने के लिए गांधी जयंती पर निकाली यात्रा: गांधी जयंती 2 अक्टूबर 2021 के अवसर पर विरासत स्वराज संप्रभुता यात्रा शुरू की गई। शुभारम्भ वाग्धारा संस्थान के कूपड़ा स्थित जनजाति स्वराज केंद्र से किया गया, जिसमें पानी बाबा राजेन्द्र सिंह और सर्वोदय विचारक आशा बोथरा बतौर अतिथि मौजूद रही। समापन 14 अक्टूबर को राजस्थान के जलियांवाला बाग कहे जाने वाले बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में हुआ। 

तीन प्रदेशों से निकली यात्रा:

यात्रा राजस्थान, गुजरात एवं मध्य प्रदेश के 12 पंचायत समितियों के 1000 गांवों में गई। जिसमें व्यक्तिगत के साथ ही सामुदायिक पहल पर जोर दिया गया ताकि समुदाय आधारित गतिविधियों का लाभ मिल सके। सीधे तौर पर इसमें करीब 20000 लोगों का जुड़ाव रहा। लोगों को समझाया गया कि स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्तर पर विदेशी शासन से स्वाधीनता प्राप्त करना नहीं था, बल्कि गांधी का स्वराज आत्म-सयंम, ग्राम-राज्य व सत्ता के विकेन्द्रीकरण पर बल देता है।

सवाल जवाब से समस्याओं के हल का प्रयास:

यात्रा में प्रश्रोत्तरी पर फोकस रहता है। ग्रामीणों से उन प्रश्रों को उत्तर जानने का प्रयास करते हैं, जिनकी उन्हें जरुरत है लेकिन संसाधनों की कमी के चलते, निजी समस्याओं के चलते वो कर नहीं रहे हैं। इस प्रश्नोत्तरी में ही उन्हें अहसास दिलाते हैं कि उनकी विरासत कितनी अनमोल है, जिसे वे व्यर्थ कर रहे हैं।

इन प्रश्नों पर हुई चर्चा, उत्तर से समाधान निकालने का प्रयास:

  • हमारे जल के स्त्रोतों की क्या स्थिति है? 
  • वर्तमान में स्थानीय स्तर पर जल संरक्षण की क्या व्यवस्था है? 
  • जल संरक्षण के क्या-क्या तरीके होते हैं? 
  • क्या हमारे गांव के किसान इन्हें अपनाते हैं? 
  • जल का हमारे जीवन में महत्व भी बताया जा रहा है। 
  • मिट्टी स्वराज- जमीन और मिट्टी की क्या स्थिति है? 
  • क्या हमारी मिट्टी जीवंत है? 
  • क्या मिट्टी को जीवंत बनाना उपयोगी है? 
  • मिट्टी को जीवंत कैसे बनाया जा सकता है?
  • इसके लिए गांव में क्या तरीके हो सकते हैं?

 

बच्चों के अधिकारों पर भी चर्चा:

बच्चों के अधिकारों के संरक्षण में समुदाय की भूमिका को भी चर्चा में शामिल किया गया और अब गांव स्तर तक यह बैठकों के रूप में जारी है। गाँव में 100 प्रतिशत बच्चे शिक्षा से जुड़े तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे प्राप्त कर सकते हैं, इसको कैसे सुनिश्चित करेंगे? अपने गाँव को बाल मित्र कैसे बनायेंगे जिससे सभी बच्चों को उनके सभी अधिकार मिले एवं इसमें समुदाय की भूमिका क्या होगी? क्या हमारा गाँव बच्चों के लिये उपयुक्त जगह हैं? हमारे गाँव में कितनी कक्षा तक पढ़ाई होती हैं? कितने बच्चें दूसरी जगह पढऩे जाते है? क्या लड़कियां भी अन्य गाँव में पढऩे जाती हैं? हमारे बच्चो की शादी की उम्र क्या हैं? गाँव में ऐसा कोई बच्चा जो 18 वर्ष से कम हो और माता-पिता के साथ पलायन के लिए जाता हैं? हमारे गाँव में कितनी आंगनवाडी हैं और क्या गाँव के सभी 6 वर्ष आयु तक के बच्चे आंगनवाडी से जुड़े हैं?

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डिस्क्लेमर:

ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और ये आवश्यक रूप से आजादी.मी के विचारों को परिलक्षित नहीं करते हैं।

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